prime
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मै हूँ मूक पंछी
आकाश में उड़ता हूँ , ठहरता हूँ
परन्तु मेरे लक्ष में बाधाएं अनेक है
कभी आंधी उडके मुझे झुका देती है
कभी हवईजहज आकर मुझे करता है भयभीत
कभी कोई गिद्ध बना न ले मुझे शिकार
कभी कोई पतंग , कहीं कोई ऊँची दीवार
मै भी बनता हूँ संतुलन बाताबरण ऐ मानव !
मेरा भी कुछ सोचो , नहीं तो तुम हो केवल एक बतियाते दानव !
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